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पहले चिंगारी से इक शोला बनाता है मुझे | शाही शायरी
pahle chingari se ek shola banata hai mujhe

ग़ज़ल

पहले चिंगारी से इक शोला बनाता है मुझे

उबैदुल्लह सिद्दीक़ी

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पहले चिंगारी से इक शोला बनाता है मुझे
फिर वही तेज़ हवाओं से डराता है मुझे

बैन करते हुए इस रात के सन्नाटे में
दश्त से घर की तरफ़ कौन बुलाता है मुझे

गर्द होते हुए चेहरे से मिलाने के लिए
आइना-ख़ाने में कोई लिए जाता है मुझे

शाम होती है तो मेरा ही फ़साना अक्सर
वो जो टूटा हुआ तारा है सुनाता है मुझे

रेग-ए-सहरा से तअल्लुक़ को बढ़ा देता है
ख़्वाब में जब भी वो दरिया नज़र आता है मुझे