पहले चाहत को तेज़ कर लेगा
फिर वो मुझ से गुरेज़ कर लेगा
मुस्कुराएगा बात करते हुए
बात यूँ मा'नी-ख़ेज़ कर लेगा
दो-क़दम साथ वो चलेगा फिर
अपनी रफ़्तार तेज़ कर लेगा
उस को बेटी की शादी करनी है
क़र्ज़ ले कर जहेज़ कर लेगा
जब भी आलूदगी को देखेगा
ख़ुद को वो इत्र-बेज़ कर लेगा
आएगा मुझ से दोस्ती करने
जब वो नाख़ुन को तेज़ कर लेगा

ग़ज़ल
पहले चाहत को तेज़ कर लेगा
हबीब कैफ़ी