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पहले भी कौन साथ था | शाही शायरी
pahle bhi kaun sath tha

ग़ज़ल

पहले भी कौन साथ था

अली वजदान

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पहले भी कौन साथ था
अब जो कोई नहीं रहा

वक़्त सितम-ज़रीफ़ था
वक़्त का फिर भी क्या गिला

कैसी अजीब शाम थी
कैसा अजीब वाक़िआ'

कहने को कह रहे हैं लोग
मैं ने तुझे भुला दिया

क़िस्सा ये है कि मैं तुझे
दिल से कहाँ भुला सका

तर्क-ए-तअल्लुक़ात का
बाक़ी है एक मरहला

बाक़ी है अब भी ज़ेहन में
ख़्वाबों का एक सिलसिला

इश्क़ से निस्बतों में है
मेरे सफ़र का रास्ता

शाम हुई तो चल पड़ा
हिज्र-ज़दों का क़ाफ़िला

कोह-कनी से रब्त है
नाम-ओ-नसब का ज़िक्र क्या