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पड़ी रहेगी अगर ग़म की धूल शाख़ों पर | शाही शायरी
paDi rahegi agar gham ki dhul shaKHon par

ग़ज़ल

पड़ी रहेगी अगर ग़म की धूल शाख़ों पर

राजेन्द्र नाथ रहबर

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पड़ी रहेगी अगर ग़म की धूल शाख़ों पर
उदास फूल खिलेंगे मलूल शाख़ों पर

अभी न गुलशन-ए-उर्दू को बे-चराग़ कहो
खिले हुए हैं अभी चंद फूल शाख़ों पर

निकल पड़े हैं हिफ़ाज़त को चंद काँटे भी
हुआ है जब भी गुलों का नुज़ूल शाख़ों पर

हवा के सामने उन की बिसात ही क्या थी
दिखा रहे थे बहारें जो फूल शाख़ों पर

निसार-ए-गुल हो मिला है ये इज़्न बुलबुल को
हुआ है हुक्म गुल-ए-तर को झूल शाख़ों पर

वो फूल पहुँचे न जाने कहाँ कहाँ 'रहबर'
नहीं था जिन को ठहरना क़ुबूल शाख़ों पर