EN اردو
पढ़िए सबक़ यही है वफ़ा की किताब का | शाही शायरी
paDhiye sabaq yahi hai wafa ki kitab ka

ग़ज़ल

पढ़िए सबक़ यही है वफ़ा की किताब का

अज़हर नवाज़

;

पढ़िए सबक़ यही है वफ़ा की किताब का
काँटे करा रहे हैं तआरुफ़ गुलाब का

कैसा ये इंतिशार दियों की सफ़ों में है
कुछ तो असर हुआ है हवा के ख़िताब का

ये तय किया जो मैं ने जुनूँ तक मैं जाऊँगा
ये मरहला अहम है मिरे इज़्तिराब का

माना बहुत हसीन था वो उम्र का पड़ाव
क़िस्सा मगर न छेड़िए अहद-ए-शबाब का

'अज़हर' कहीं से नींद का अब कीजे इंतिज़ाम
यूँही निकल न जाए ये मौसम भी ख़्वाब का