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पढ़ चुके हैं निसाब-ए-तंहाई | शाही शायरी
paDh chuke hain nisab-e-tanhai

ग़ज़ल

पढ़ चुके हैं निसाब-ए-तंहाई

यशब तमन्ना

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पढ़ चुके हैं निसाब-ए-तंहाई
अब लिखेंगे किताब-ए-तंहाई

वस्ल की शब तमाम होते ही
आ गया आफ़्ताब-ए-तंहाई

ख़ामुशी वहशतें उदासी है
खिल रहे हैं गुलाब-ए-तंहाई

उस की यादों के घर में जाते ही
खुल गया हम पे बाब-ए-तंहाई

वस्ल की शब तुम्हारे पहलू में
ले रहा हूँ सवाब-ए-तंहाई

किस को बतलाएँ कौन समझेगा
कैसे झेले अज़ाब-ए-तंहाई

दोस्तों से गुरेज़ करता हूँ
हो रहा हूँ ख़राब-ए-तंहाई