पड़े हैं मस्त भी साक़ी अयाग़ के नज़दीक
हुजूम पर हैं पतंगे चराग़ के नज़दीक
हमारे अश्क मिटाते हैं दाग़-ए-दिल की बहार
ये आब-ए-शोर की नहरें हैं बाग़ के नज़दीक
सफ़ाई यार से मेले में हो गई अपनी
मलाल दूर हुआ ऐश-बाग़ के नज़दीक
वो दिल-जले हैं कि आए 'मेहर' ठंडा करने को
हवा न आ के हमारे चराग़ के नज़दीक
ग़ज़ल
पड़े हैं मस्त भी साक़ी अयाग़ के नज़दीक
अब्दुल्ल्ला ख़ाँ महर लखनवी