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पड़ा हूँ ज़ेर-ए-क़दम ख़ाक-ए-रहगुज़र बन कर | शाही शायरी
paDa hun zer-e-qadam KHak-e-rahguzar ban kar

ग़ज़ल

पड़ा हूँ ज़ेर-ए-क़दम ख़ाक-ए-रहगुज़र बन कर

मज़ाक़ बदायुनी

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पड़ा हूँ ज़ेर-ए-क़दम ख़ाक-ए-रहगुज़र बन कर
झुका हूँ मैं हमा-तन उस गली में सर बन कर

निकल गया मिरी आँखों से मिस्ल-ए-ख़्वाब-व-ख़याल
गुज़र गया दिल-ए-रौशन से वो नज़र बन कर

किताब ओ ख़त ही के धोके में रह गए अग़्यार
वो यार आप ही आया पयाम-बर बन कर

किसी की तेग़-ए-निगह ने मिटा दिए धब्बे
हमारे दाग़-ए-जिगर कट गए सिपर बन कर

'मज़ाक़' साक़ी-ए-कौसर मुझे सँभालेंगे
नशे में बिगड़ी तबीअत मिरी अगर बन कर