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पड़ा है पाँव में अब सिलसिला मोहब्बत का | शाही शायरी
paDa hai panw mein ab silsila mohabbat ka

ग़ज़ल

पड़ा है पाँव में अब सिलसिला मोहब्बत का

वाजिद अली शाह अख़्तर

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पड़ा है पाँव में अब सिलसिला मोहब्बत का
बुरा हमारा हुआ हो भला मोहब्बत का

जमाल-ए-साफ़ की मूसा को ताब कब आई
जो देखिए तो है तालिब ख़ुदा मोहब्बत का

हर एक दर पे है गर्दिश में मेरा कासा-ए-चश्म
वो शाह-ए-हुस्न हुआ ये गदा मोहब्बत का

न सीम-ओ-ज़र की है हाजत न कुछ हुकूमत की
उगाल दे के दिया ख़ूँ-बहा मोहब्बत का

किधर से जाता था 'अख़्तर' ये क्या हुआ अफ़्सोस
ख़ुदा बचाए हुआ सामना मोहब्बत का