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पावे किस तरह कोई किस को है मक़्दूर हमें | शाही शायरी
pawe kis tarah koi kis ko hai maqdur hamein

ग़ज़ल

पावे किस तरह कोई किस को है मक़्दूर हमें

मीर मोहम्मदी बेदार

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पावे किस तरह कोई किस को है मक़्दूर हमें
ले गया इश्क़ तिरा खींच बहुत दूर हमें

सुब्ह की रात तो रो रो के अब आ ऐ बे-मेहर
रोज़-ए-रौशन को दिखा मत शब-ए-दीजूर हमें

रब्त को चाहिए यक नौअ' की जिंसिय्यत याँ
चश्म-ए-बीमार उसे है दिल-ए-रंजूर हमें

बात गर कीजे तो है बंदा-नवाज़ी वर्ना
देखना ही है फ़क़त आप का मंज़ूर हमें

उल्फ़त उस शोख़ की छूटे है कोई जीते-जी
रक्खो इस पंद से ऐ नासेहो मा'ज़ूर हमें

पी है मय रात को या जागे हो तुम कुछ तो है
आँखें आती हैं नज़र आज तो मख़मूर हमें

याँ से 'बेदार' गया वो मह-ए-ताबाँ शायद
नज़र आता है ये घर आज तो बे-नूर हमें