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पास-ए-इख़्लास सख़्त है तकलीफ़ | शाही शायरी
pas-e-iKHlas saKHt hai taklif

ग़ज़ल

पास-ए-इख़्लास सख़्त है तकलीफ़

क़ाएम चाँदपुरी

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पास-ए-इख़्लास सख़्त है तकलीफ़
ता-कुजा ख़ातिर-ए-वज़ी-ओ-शरीफ़

चश्म ओ दिल से न थी ये चश्म हमें
कि न गिर्या के हो सकेंगे हरीफ़

सुब्ह तक था वहीं ये मुख़्लिस भी
आप रखते थे शब जहाँ तशरीफ़

मुझ से तुझ बिन गया जो फ़स्ल-ए-रबी
कब ये अश्जार से करे है ख़रीफ़

यूँ कभू तू ने मय न दी साक़ी
ना-ए-हुल्क़ूम को समझते क़ीफ़

अपने तईं आप वो नहीं पाते
फ़िक्र में तुझ कमर की हैं जो ज़ईफ़

क्यूँ न वाही हो शेर 'क़ाएम' का
है दिवाने की आख़िरश तसनीफ़