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पास भी रह कर दूर है तो | शाही शायरी
pas bhi rah kar dur hai to

ग़ज़ल

पास भी रह कर दूर है तो

नासिर शहज़ाद

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पास भी रह कर दूर है तो
मैं बे-बस मजबूर है तू

प्यासी अखियाँ ढूँढ थकीं
बोल कहाँ मस्तूर है तू

रोग और जोग अटूट सही
आस या पास ज़रूर है तू

एक अकेला मैं बेकल
तन्हा चकना-चूर है तू

प्यार इक़रार से जोड़ सभी
में दुनिया दस्तूर है तू

हाथ से दूर निगह से जुदा
दिल में नूर-ए-ज़ुहूर है तू

हर चौखट में निरास उदास
हर आँगन रंजूर है तू