पारसाओं ने बड़े ज़र्फ़ का इज़हार किया
हम से पी और हमें रुस्वा सर-ए-बाज़ार किया
दर्द की धूप में सहरा की तरह साथ रहे
शाम आई तो लिपट कर हमें दीवार किया
रात फूलों की नुमाइश में वो ख़ुश-जिस्म से लोग
आप तो ख़्वाब हुए और हमें बेदार किया
कुछ वो आँखों को लगे संग पे सब्ज़े की तरह
कुछ सराबों ने हमें तिश्ना-ए-दीदार किया
तुम तो रेशम थे चटानों की निगह-दारी में
किस हवा ने तुम्हें पा-बस्ता-ए-यलग़ार किया
हम बुरे क्या थे कि इक सिद्क़ को समझे थे सिपर
वो भी अच्छे थे कि बस यार कहा वार किया
संगसारी में तो वो हाथ भी उट्ठा था 'अता'
जिस ने मासूम कहा जिस ने गुनहगार किया
ग़ज़ल
पारसाओं ने बड़े ज़र्फ़ का इज़हार किया
अता शाद