पाँव मेरा फिर पड़ा है दश्त में
वो ही आवारा हवा है दश्त में
अब मिरी तन्हाई कम हो जाएगी
इक बगूला मिल गया है दश्त में
बस्तियों से भी ज़ियादा शोर है
कौन इतना चीख़ता है दश्त में
किस तरह ख़ुद को बचाएगा कोई
एक नादीदा बला है दश्त में
ख़ाक और कुछ ज़र्द पत्तों के सिवा
तुझ को 'आज़र' क्या मिला है दश्त में
ग़ज़ल
पाँव मेरा फिर पड़ा है दश्त में
बलवान सिंह आज़र