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पामाल-ए-ख़िराम-ए-नाज़ कीजे | शाही शायरी
pamal-e-KHiram-e-naz kije

ग़ज़ल

पामाल-ए-ख़िराम-ए-नाज़ कीजे

किशन कुमार वक़ार

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पामाल-ए-ख़िराम-ए-नाज़ कीजे
ठुकराइए सरफ़राज़ कीजे

दिल तुम ने लिया ज़बान दे कर
आशिक़ का न फ़ाश राज़ कीजे

सोज़-ए-तप हिज्र का ये है हुक्म
तन शम-ए-सिफ़त गुदाज़ कीजे

महमूद हुआ है हुस्न साहब
पहले मुझ को अयाज़ कीजे

हो कोई क़ज़ा जो बादा-ख़्वारो
भट्टी पे अदा नमाज़ कीजे

कहता है ये नाज़-ए-दिल-रुबाई
ऐ आशिक़ो जान नियाज़ कीजे

ना-साज़ ज़माने का नहीं ग़म
हाँ कार ज़माना-साज़ कीजे

ग़ैरों से तो है 'वक़ार' बेहतर
अब आप भी इम्तियाज़ कीजे