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पाबंद हर जफ़ा पे तुम्हारी वफ़ा के हैं | शाही शायरी
paband har jafa pe tumhaari wafa ke hain

ग़ज़ल

पाबंद हर जफ़ा पे तुम्हारी वफ़ा के हैं

अब्दुल्ल्ला ख़ाँ महर लखनवी

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पाबंद हर जफ़ा पे तुम्हारी वफ़ा के हैं
रहम ऐ बुतो कि हम भी तो बंदे ख़ुदा के हैं

गुलचीं बहार-ए-गुल में न कर मनअ' सैर-ए-बाग़
क्या हम ग़ुबार दामन-ए-बाद-ए-सबा के हैं

ये सादा-रू जो साफ़ नहीं रहते शाम-ए-वस्ल
आशिक़ ग़ुबार दामन-ए-सुब्ह-ए-ख़फ़ा के हैं

जिस को यक़ीं बक़ा का हो वाइ'ज़ तिरी सुने
हम लोग मस्त बादा-ए-जाम-ए-फ़ना के हैं

ऐ 'मेहर' तब-ए-बर्क़ ने बेताब दिल किया
मज़मूँ चमक-दमक के क़वाफ़ी बला के हैं