पा-शिकस्तों को जब जब मिलेंगे आप
सर-ए-राह-ए-तलब मिलेंगे आप
उन से पूछा कि कब मिलेंगे आप
बोले जब जाँ-ब-लब मिलेंगे आप
दिल ये कह कर ख़बर को उस की चला
मुझ को ज़िंदा न अब मिलेंगे आप
अर्सा-ए-हश्र ईद-गाह हुआ
सब से मिल लेंगे जब मिलेंगे आप
वस्ल में भी जबीं पे होगी शिकन
तोड़ने को ग़ज़ब मिलेंगे आप
बे-ख़ुदों को तलाश से क्या काम
हर जगह बे-तलब मिलेंगे आप
छोड़ दी रुख़ पे ज़ुल्फ़ समझे हम
छुप के एक आध शब मिलेंगे आप
छेड़ मुतरिब तराना-ए-शब-ए-वस्ल
साज़-ए-ऐश-ओ-तरब मिलेंगे आप
यार जब मिल गया तो हम से 'जलाल'
जो न मिलते थे सब मिलेंगे आप

ग़ज़ल
पा-शिकस्तों को जब जब मिलेंगे आप
जलाल लखनवी