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ओस की तमन्ना में जैसे बाग़ जलता है | शाही शायरी
os ki tamanna mein jaise bagh jalta hai

ग़ज़ल

ओस की तमन्ना में जैसे बाग़ जलता है

सफ़दर मीर

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ओस की तमन्ना में जैसे बाग़ जलता है
तू न हो तो सीने का दाग़ दाग़ जलता है

चाँद चल दिया चुप-चाप सो गए सितारे भी
रात की स्याही में दिल का दाग़ जलता है

मौत इक कहानी है ज़ीस्त जावेदानी है
इक चराग़ बुझता है इक चराग़ जलता है

क़त्ल-गाह से ले कर क़ातिलों के दामन तक
ख़ून-ए-नाहक़-ए-फ़रहाद का सुराग़ जलता है

साथियों से दूरी में इक जहाँ से दूरी है
मय में दम नहीं साक़ी और अयाग़ जलता है