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ओहदे से तेरे हम को बर आया न जाएगा | शाही शायरी
ohde se tere hum ko bar aaya na jaega

ग़ज़ल

ओहदे से तेरे हम को बर आया न जाएगा

क़ाएम चाँदपुरी

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ओहदे से तेरे हम को बर आया न जाएगा
ये नाज़ है तो हम से उठाया न जाएगा

टूटा जो काबा कौन सी ये जा-ए-ग़म है शैख़
कुछ क़स्र-ए-दिल नहीं कि बनाया न जाएगा

आतिश तो दी थी ख़ाना-ए-दिल के तईं मैं आप
पर क्या ख़बर थी ये कि बुझाया न जाएगा

होते तिरे मुहाल है हम दरमियाँ न हों
जब तक वजूद-ए-शख़्स है साया न जाएगा

मुजरिम हूँ वो कि एक फ़क़त रोज़-ए-बाज़-पुर्स
नामा मिरे अमल का दिखाया न जाएगा

है ख़्वाजा आज नाम के पीछे ये सब ख़राब
ग़ाफ़िल कि कल निशान भी पाया न जाएगा

'क़ाएम' ख़ुदा भी होने को जो जानते हैं नंग
बंदा तू उन के पास कहाया न जाएगा