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ओ मियाँ बाँके है कहाँ की चाल | शाही शायरी
o miyan banke hai kahan ki chaal

ग़ज़ल

ओ मियाँ बाँके है कहाँ की चाल

मुसहफ़ी ग़ुलाम हमदानी

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ओ मियाँ बाँके है कहाँ की चाल
तुम जो चलते हो नित ये बाँकी चाल

नाज़-ए-रफ़्तार ये नहीं देखा
हम ने देखी है इक जहाँ की चाल

लाखों पामाल-ए-नाज़ हैं उन के
कौन समझे है इन बुताँ की चाल

कब्क को देख कर ये कहने लगा
ये चले है हमारे हाँ की चाल

रख के शतरंज-ए-ग़ाएबाना-ए-इश्क़
तुम चले इक तो इम्तिहाँ की चाल

तिस पे दुश्मन हमारे जी की हुई
कजी-ए-पेल-ए-आसमाँ की चाल

'मुसहफ़ी' भर चला वो रीश ओ बरूत
हुए जस पीर-ए-ना-तवाँ की चाल