ओ दिल तोड़ के जाने वाले दिल की बात बताता जा
अब मैं दिल को क्या समझाऊँ मुझ को भी समझाता जा
हाँ मेरे मजरूह तबस्सुम ख़ुश्क लबों तक आता जा
फूल की हस्त-ओ-बूद यही है खिलता जा मुरझाता जा
मेरी चुप रहने की आदत जिस कारन बद-नाम हुई
अब वो हिकायत आम हुई है सुनता जा शरमाता जा
ये दुख-दर्द की बरखा बंदे देन है तेरे दाता की
शुक्र-ए-नेमत भी करता जा दामन भी फैलाता जा
जीने का अरमान करूँ या मरने का सामान करूँ
इश्क़ में क्या होता है नासेह अक़्ल की बात सुझाता जा
तुझ को अब्र-आलूद दिनों से काम न चाँदनी रातों से
बहलाता है बातों से बहलाता जा बहलाता जा
दोनों संग-ए-राह-ए-तलब हैं राह-नुमा भी मंज़िल भी
ज़ौक़-ए-तलब हर एक क़दम पर दोनों को ठुकराता जा
नग़्मे से जब फूल खिलेंगे चुनने वाले चुन लेंगे
सुनने वाले सुन लेंगे तू अपनी धुन में गाता जा
आख़िर तुझ को भी मौत आई ख़ैर 'हफ़ीज़' ख़ुदा-हाफ़िज़
लेकिन मरते मरते प्यारे वज्ह-ए-मर्ग बताता जा
ग़ज़ल
ओ दिल तोड़ के जाने वाले दिल की बात बताता जा
हफ़ीज़ जालंधरी