नूर-ओ-निकहत की ये बरसात कहाँ थी पहले
ज़िंदगी इतनी हसीं रात कहाँ थी पहले
अब तो पलकों पे सितारे से लरज़ उठते हैं
ग़म-ए-महबूब की ये बात कहाँ थी पहले
तेरी यादों से फ़रोज़ाँ हैं फ़ज़ाएँ जिन की
ऐसी रातों से मुलाक़ात कहाँ थी पहले
उन की बदमस्त निगाहों का करम है ऐ दिल
ज़िंदगी बज़्म-ए-ख़राबात कहाँ थी पहले
कैफ़ ये दर्द-ए-मोहब्बत ने किया है पैदा
ये दिल-आवेज़ी-ए-नग़्मात कहाँ थी पहले
आज यूँ दिल के तड़पने का भरम टूटा है
हसरत-ए-लुत्फ़-ओ-इनायात कहाँ थी पहले
'नक़्श' उन शोख़ निगाहों का फ़ुसूँ है वर्ना
दिल में ये शोरिश-ए-जज़्बात कहाँ थी पहले
ग़ज़ल
नूर-ओ-निकहत की ये बरसात कहाँ थी पहले
महेश चंद्र नक़्श

