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नुस्ख़े में तबीबों ने लिखा और ही कुछ है | शाही शायरी
nusKHe mein tabibon ne likha aur hi kuchh hai

ग़ज़ल

नुस्ख़े में तबीबों ने लिखा और ही कुछ है

रौनक़ टोंकवी

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नुस्ख़े में तबीबों ने लिखा और ही कुछ है
बीमार-ए-मोहब्बत की दवा और ही कुछ है

अग़्यार से थीं मेरे सताने की सलाहें
और मैं ने जो पूछा तो कहा और ही कुछ है

कहते हैं वो घबरा के मुझे देख के ग़श में
मर जाएँगे ये इन को हुआ और ही कुछ है

माँगे कोई दौलत कोई इज़्ज़त कोई जन्नत
और आशिक़-ए-बे-दिल की दुआ और ही कुछ है

आ'दा की मुलाक़ात से इंकार मुसल्लम
क्या कहिए मगर हम ने सुना और ही कुछ है

हर-चंद क़यामत है तिरी चश्म की शोख़ी
शोख़ी में मगर रंग-ए-हया और ही कुछ है

हाँ ज़मज़मा-ए-बुलबुल-ओ-क़ुमरी न पे जाना
'रौनक़' दिल-ए-नादाँ की सदा और ही कुछ है