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नुक़रई उजाले पर सुरमई अंधेरा है | शाही शायरी
nuqrai ujale par surmai andhera hai

ग़ज़ल

नुक़रई उजाले पर सुरमई अंधेरा है

रमेश कँवल

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नुक़रई उजाले पर सुरमई अंधेरा है
यानी मेरी क़िस्मत को गर्दिशों ने घेरा है

वक़्त ने जुदाई के ज़ख़्म भर दिए लेकिन
ज़ख़्म की कहानी भी वक़्त का ही फेरा है

टूटते बिखरते इन हौसलों को समझाओ
उलझनों की शाख़ों पर लज़्ज़तों का डेरा है

आने वाला सन्नाटा मस्तियाँ उड़ा देगा
नागिनो! सँभल जाओ सामने सपेरा है