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नुमू की ख़ाक से उट्ठेगा फिर लहू मेरा | शाही शायरी
numu ki KHak se uTThega phir lahu mera

ग़ज़ल

नुमू की ख़ाक से उट्ठेगा फिर लहू मेरा

अासिफ़ साक़िब

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नुमू की ख़ाक से उट्ठेगा फिर लहू मेरा
अक़ब से वार करे चाहे जंग-जू मेरा

लकीर खींच के मुझ पे वो फिर मुझे देखे
निगार-ओ-नक़्श में चेहरा है हू-ब-हू मेरा

रक़ीब-ए-तिश्ना तू जी भर के ख़ाक चाटेगा
चटख़ के टूट गया हाथ में सुबू मेरा

मैं अपनी रूह की तारीकियों में झाँक चुका
निकल सका न कमीं-गाह से अदू मेरा

ये रूप अपने मसीहा का देख कर 'साक़िब'
अटक के रह ही गया साँस दर-गुलू मेरा