EN اردو
निज़ाम-ए-गुलशन-ए-हस्ती बदल के दम लेंगे | शाही शायरी
nizam-e-gulshan-e-hasti badal ke dam lenge

ग़ज़ल

निज़ाम-ए-गुलशन-ए-हस्ती बदल के दम लेंगे

क़ैसर निज़ामी

;

निज़ाम-ए-गुलशन-ए-हस्ती बदल के दम लेंगे
हुदूद-ए-रंज-ओ-आलम से निकल के दम लेंगे

शुऊर हासिल-ए-मक़सद जिसे समझता है
ये अज़्म है उसी मंज़िल पे चल के दम लेंगे

मता-ए-अमन लुटाएँगे हम ज़माने में
निज़ाम-ए-जब्र-ओ-तशद्दुद कुचल के दम लेंगे

नदीम बहर-ए-मुसीबत में सूरत-ए-तूफ़ाँ
मचल मचल के उठेंगे सँभल के दम लेंगे

नहीं पसंद रिवाज-ए-कोहन हमें 'क़ैसर'
नए निज़ाम के साँचे में ढल के दम लेंगे