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निज़ाम-ए-फ़िक्र ने बदला ही था सवाल का रंग | शाही शायरी
nizam-e-fikr ne badla hi tha sawal ka rang

ग़ज़ल

निज़ाम-ए-फ़िक्र ने बदला ही था सवाल का रंग

एजाज़ सिद्दीक़ी

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निज़ाम-ए-फ़िक्र ने बदला ही था सवाल का रंग
झलक उठा कई चेहरों से इंफ़िआल का रंग

न गुल-कदों को मयस्सर न चाँद-तारों को
तिरे विसाल की ख़ुश्बू तिरे जमाल का रंग

ज़रा सी देर को चेहरे दमक तो जाते हैं
ख़ुशी का रंग हो या हो ग़म-ओ-मलाल का रंग

ज़माना अपनी कहानी सुना रहा था हमें
उभर गया मगर आग़ाज़ में मआल का रंग

असीर-ए-वक़्त है तो मैं हूँ वक़्त से आज़ाद
तिरे उरूज से अच्छा मिरे ज़वाल का रंग

बसान-ए-तख़्ता-ए-गुल मेरी फ़िक्र है आज़ाद
मिसाल-ए-क़ौस-ए-कुज़ह है मिरे ख़याल का रंग