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निस्फ़ से देख ज़रा कम न ज़ियादा आधा | शाही शायरी
nisf se dekh zara kam na ziyaada aadha

ग़ज़ल

निस्फ़ से देख ज़रा कम न ज़ियादा आधा

कोमल जोया

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निस्फ़ से देख ज़रा कम न ज़ियादा आधा
बाँट लेते हैं मोहब्बत तुझे आधा आधा

मेहरबाँ इश्क़ मुझे काट दिया जाएगा
होने वाला है मिरा दस्त-ए-कुशादा आधा

चौक में देखने वाले थे तमाशा उस का
जिस को ग़ुर्बत में मयस्सर था लबादा आधा

मेरे बेहिस मैं तुझे मिलने नहीं आऊँगी
आज तक़्सीम हुआ मेरा इरादा आधा

कूज़ा-गर मुझ को बिखरना है बिखर जाने दे
मेरी तज्सीम में शामिल है बुरादा आधा

तेरी दुनिया भी मिरी तरह उजड़ जाएगी
रह गया मुझ में अगर सब्र का माद्दा आधा

बाक़ी आधी तो किसी और की मुट्ठी में दबी
पुश्त पर मैं ने तुझे ज़ीस्त है लादा आधा