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निकली वो ज़िंदगी से तो पामाल हो गया | शाही शायरी
nikli wo zindagi se to pamal ho gaya

ग़ज़ल

निकली वो ज़िंदगी से तो पामाल हो गया

अशरफ़ शाद

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निकली वो ज़िंदगी से तो पामाल हो गया
जैसे रूवाँ रूवाँ मिरा कंगाल हो गया

बिगड़ा हुआ है हिज्र में कुछ वक़्त का निज़ाम
लम्हा गुज़र न पाया कि इक साल हो गया

मुश्किल है ये हिसाब कई हिजरतों के बा'द
अच्छा है मेरा हाल कि बद-हाल हो गया

बस यूँ ही इक ग़ज़ल सी उसे देख कर हुई
फिर इस के बा'द प्यार का जंजाल हो गया

मैं जब गुलाब चूम रहा था तो देख कर
चेहरा किसी का शरम से क्यूँ लाल हो गया