EN اردو
निकले लोग सफ़र पर शब के जंगल में | शाही शायरी
nikle log safar par shab ke jangal mein

ग़ज़ल

निकले लोग सफ़र पर शब के जंगल में

तारिक़ पीरज़ादा

;

निकले लोग सफ़र पर शब के जंगल में
रौशनी भर दे किरनों वाले पल पल में

ओ बादल कब प्यास बुझाने आएगा
वक़्त गुज़रता जाए तेरी कल कल में

चीख़ें ऐसी फूट रही हैं बस्ती से
जैसे कोई डूब रहा हो दलदल में

कौन सुकूँ दे भीगी रुत के पंछी को
अँगारों का ढेर लगा है जल-थल में

ख़ामोशी से छुप-छुप 'तारिक़' प्यार करो
जीना हो जब तूफ़ानों की हलचल में