निखरे तो जगमगा उठे बिखरे तो रंग है
सूरज तिरे बदन का बड़ा शोख़ ओ शंग है
तारीकियों के पार चमकती है कोई शय
शायद मिरे जुनून-ए-सफ़र की उमंग है
कितने ग़मों का बार उठाए हुए है दिल
इक ज़ाविए से शीशा-ए-नाज़ुक भी संग है
सहरा की गोद में भी मिलेंगे बहुत से फूल
ये अपने अपने तौर पे जीने का ढंग है
शायद जुनूँ ही अब तो करे रहबरी 'असर'
हम उस मक़ाम पर हैं जहाँ अक़्ल दंग है

ग़ज़ल
निखरे तो जगमगा उठे बिखरे तो रंग है
इज़हार असर