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निखर आई निखार आई सँवर आई सँवार आई | शाही शायरी
nikhar aai nikhaar aai sanwar aai sanwar aai

ग़ज़ल

निखर आई निखार आई सँवर आई सँवार आई

नूह नारवी

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निखर आई निखार आई सँवर आई सँवार आई
गुलों की ज़िंदगी ले कर गुलिस्ताँ में बहार आई

मशिय्यत को नहीं मंज़ूर दो दिन पारसा रखना
इधर की मैं ने तौबा और उधर फ़ौरन बहार आई

असीरान-ए-क़फ़स को वास्ता क्या इन झमेलों से
चमन में कब ख़िज़ाँ आई चमन में कब बहार आई

मुझे गुलशन से ऐ जोश-ए-जुनूँ सहरा को अब ले चल
यहाँ इस के सिवा किया है ख़िज़ाँ आई बहार आई

हमेशा बादा-ख़्वारों पर ख़ुदा को मेहरबाँ देखा
जहाँ बैठे घटा उट्ठी जहाँ पहुँचे बहार आई