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निकल के घर से और मैदाँ में आ के | शाही शायरी
nikal ke ghar se aur maidan mein aa ke

ग़ज़ल

निकल के घर से और मैदाँ में आ के

फ़राज़ सुल्तानपूरी

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निकल के घर से और मैदाँ में आ के
ज़रा कुछ देखिए तेवर हवा के

कोई ज़िंदा रहा है कब जहाँ में
चराग़-ए-दिल को अपने ख़ुद बुझा के

हमारी ख़ामुशी भी इक नवा थी
मिले कब सुनने वाले हैं नवा के

पशीमाँ एक मुद्दत तक रहा है
कोई दर से मुझे अपने उठा के

ये दिल है दिल इसे सीने में हरगिज़
कभी रखना न तुम पत्थर बना के

'फ़राज़' अक्सर रहा करता है तन्हा
अंधेरे में चराग़-ए-दिल जला के