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नींद की सौदागरी करता हूँ मैं | शाही शायरी
nind ki saudagari karta hun main

ग़ज़ल

नींद की सौदागरी करता हूँ मैं

ख़ान रिज़वान

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नींद की सौदागरी करता हूँ मैं
बस यही इक चाकरी करता हूँ मैं

लोग जो करते नहीं हैं उम्र भर
काम बस वो दीगरी करता हूँ मैं

ताकता रहता हूँ मैं तारों को यूँ
जैसे आवारा-गरी करता हूँ मैं

काम मेरा कुछ नहीं है बस मगर
हर नफ़स सूरत-गरी करता हूँ मैं

कोई अब कैसे मुक़ाबिल हो मिरा
रहबरी ही रहबरी करता हूँ मैं