EN اردو
नींद की गोली न खाओ नींद लाने के लिए | शाही शायरी
nind ki goli na khao nind lane ke liye

ग़ज़ल

नींद की गोली न खाओ नींद लाने के लिए

शिवकुमार बिलग्रामी

;

नींद की गोली न खाओ नींद लाने के लिए
कौन आएगा भला तुम को जगाने के लिए

बेटा बेटी फ़ोन पर अक्सर बताते हैं मुझे
वक़्त मिलता ही नहीं है गाँव आने के लिए

क़ब्र अपनी खोद कर ख़ुद लेट जाओ एक दिन
वक़्त किस के पास है मिट्टी उठाने के लिए

वो भी अपने वो भी अपने वो भी अपने थे कभी
वो जो अपने थे कभी वो थे रुलाने के लिए

अब जो अपने हैं न उन का हाल हम से पूछिए
हाल भी वो पूछते हैं तो सताने के लिए

किस लिए धड़कन बढ़ी है फिर तिरी मजरूह दिल
क्या अभी कोई बचा है आज़माने के लिए