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नींद आँखों से उड़ी फूल से ख़ुश्बू की तरह | शाही शायरी
nind aankhon se uDi phul se KHushbu ki tarah

ग़ज़ल

नींद आँखों से उड़ी फूल से ख़ुश्बू की तरह

उबैदुल्लाह अलीम

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नींद आँखों से उड़ी फूल से ख़ुश्बू की तरह
जी बहल जाएगा शब से तिरे गेसू की तरह

दोस्तो जश्न मनाओ कि बहार आई है
फूल गिरते हैं हर इक शाख़ से आँसू की तरह

मेरी आशुफ़्तगी-ए-शौक़ में इक हुस्न भी है
तेरे आरिज़ पे मचलते हुए गेसू की तरह

अब तिरे हिज्र में लज़्ज़त न तिरे वस्ल में लुत्फ़
इन दिनों ज़ीस्त है ठहरे हुए आँसू की तरह

ज़िंदगी की यही क़ीमत है कि अर्ज़ां हो जाओ
नग़्मा-ए-दर्द लिए मौजा-ए-ख़ुश्बू की तरह

किस को मालूम नहीं कौन था वो शख़्स 'अलीम'
जिस की ख़ातिर रहे आवारा हम आहू की तरह