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नींद आँखों में समो लूँ तो सियह रात कटे | शाही शायरी
nind aankhon mein samo lun to siyah raat kaTe

ग़ज़ल

नींद आँखों में समो लूँ तो सियह रात कटे

शमीम तारिक़

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नींद आँखों में समो लूँ तो सियह रात कटे
ये ज़मीं ओढ़ के सो लूँ तो सियह रात कटे

क़तरा-ए-अश्क भी लौ देते हैं जुगनू की तरह
दो घड़ी फूट के रो लूँ तो सियह रात कटे

रोने-धोने से नहीं उगता ख़ुशी का सूरज
क़हक़हे होंट पे बोलूँ तो सियह रात कटे

आँख ना-दीदा मनाज़िर के तजस्सुस का है नाम
मोतियाँ आँख में रोलूँ तो सियह रात कटे

कर्ब-ए-तन्हाई मिरी रूह का करती है सिंघार
ज़हर एहसास का घोलूँ तो सियह रात कटे