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नींद आँखों में है कम कम मुझे आवाज़ न दो | शाही शायरी
nind aankhon mein hai kam kam mujhe aawaz na do

ग़ज़ल

नींद आँखों में है कम कम मुझे आवाज़ न दो

जावेद कमाल रामपुरी

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नींद आँखों में है कम कम मुझे आवाज़ न दो
जाग जाएगा कोई ग़म मुझे आवाज़ न दो

यूँ भी रफ़्तार-ए-दिल-ए-ज़ार है मद्धम मद्धम
और हो जाएगी मद्धम मुझे आवाज़ न दो

नीम-ख़ामोश है साज़-ए-रग-ए-जाँ का हर तार
तार हो जाएँगे बरहम मुझे आवाज़ न दो

बअ'द मुद्दत के ज़रा दिल को क़रार आया है
जाने क्या दिल का हो आलम मुझे आवाज़ न दो