नीम-शब आतिश-ए-फ़रियाद-ए-असीराँ रौशन
धूप सी फैल रही है सर-ए-दीवार-ए-चमन
या तिरे क़ुर्ब की ये साअ'त-ए-अफ़्सुर्दा है
या कभी तेरे तसव्वुर से सुलगता था बदन
दिल-जले रोए हैं शायद कहीं फिर आख़िर-ए-शब
भीगा भीगा है नसीम-ए-सहरी का दामन
आज तक याद है वो शाम-ए-जुदाई का समाँ
तेरी आवाज़ की लर्ज़िश तिरे लहजे की थकन
दिल के ज़ख़्मों से महक आती है फूलों की 'अज़ीम'
सीना-ए-चाक है या रख़्ना-ए-दीवार-ए-चमन
ग़ज़ल
नीम-शब आतिश-ए-फ़रियाद-ए-असीराँ रौशन
अज़ीम मुर्तज़ा