नील-ए-फ़लक के इस्म में नक़्श-ए-असीर के सबब
हैरत है आब-ओ-ख़ाक में माह-ए-मुनीर के सबब
बन में अलाहिदगी सी है उस के जमाल-ए-सब्ज़ से
दाइम फ़ज़ा फ़िराक़ की शजर-ए-पीर के सबब
वुसअत-ए-शहर-ए-तंग-दिल सरमा की सुब्ह-ए-सर्द में
जागी है डर के ख़्वाब से सूरत-ए-फ़क़ीर के सबब
सहन-ए-मकाँ में शल है दस्त-ए-दुआ-ए-आगही
दिल में है शौक़-ए-बे-हिसाब हद की लकीर के सबब
ज़ख़्म-ए-वजूद की दवा बस वही आख़िरी सदा
ज़िंदा हूँ जिस के शौक़ में सब्र-ए-कबीर के सबब
सेहर है मौत में 'मुनीर' जैसे है सेहर-ए-आइना
सारी कशिश है चीज़ में अपनी नज़ीर के सबब
ग़ज़ल
नील-ए-फ़लक के इस्म में नक़्श-ए-असीर के सबब
मुनीर नियाज़ी