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नील-ए-फ़लक के इस्म में नक़्श-ए-असीर के सबब | शाही शायरी
nil-e-falak ke ism mein naqsh-e-asir ke sabab

ग़ज़ल

नील-ए-फ़लक के इस्म में नक़्श-ए-असीर के सबब

मुनीर नियाज़ी

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नील-ए-फ़लक के इस्म में नक़्श-ए-असीर के सबब
हैरत है आब-ओ-ख़ाक में माह-ए-मुनीर के सबब

बन में अलाहिदगी सी है उस के जमाल-ए-सब्ज़ से
दाइम फ़ज़ा फ़िराक़ की शजर-ए-पीर के सबब

वुसअत-ए-शहर-ए-तंग-दिल सरमा की सुब्ह-ए-सर्द में
जागी है डर के ख़्वाब से सूरत-ए-फ़क़ीर के सबब

सहन-ए-मकाँ में शल है दस्त-ए-दुआ-ए-आगही
दिल में है शौक़-ए-बे-हिसाब हद की लकीर के सबब

ज़ख़्म-ए-वजूद की दवा बस वही आख़िरी सदा
ज़िंदा हूँ जिस के शौक़ में सब्र-ए-कबीर के सबब

सेहर है मौत में 'मुनीर' जैसे है सेहर-ए-आइना
सारी कशिश है चीज़ में अपनी नज़ीर के सबब