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नीची निगह की हम ने तो उस ने मुँह को छुपाना छोड़ दिया | शाही शायरी
nichi nigah ki humne to usne munh ko chhupana chhoD diya

ग़ज़ल

नीची निगह की हम ने तो उस ने मुँह को छुपाना छोड़ दिया

नज़ीर अकबराबादी

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नीची निगह की हम ने तो उस ने मुँह को छुपाना छोड़ दिया
कुछ जो हुई फिर ऊँची तो रुख़ से पर्दा उठाना छोड़ दिया

ज़ुल्फ़ से जकड़ा पहले तो दिल फिर उस का तमाशा देखने को
नज़रों का उस पर सेहर किया और कर के दिवाना छोड़ दिया

उस ने उठाया हम पे तमाँचा हम ने हटाया मुँह को जो आह
शोख़ ने हम को उस दिन से फिर नाज़ दिखाना छोड़ दिया

बैठ के नज़दीक उस के जो इक दिन पाँव को हम ने चूम लिया
उस ने हमें बेबाक समझ कर लुत्फ़ जताना छोड़ दिया

फिर जो गए हम मिलने को उस को देख के उस ने हम को 'नज़ीर'
यूँ तो कहा हाँ आओ जी लेकिन पास बिठाना छोड़ दिया