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नीची नज़रों से न देखो सर-ए-महशर देखो | शाही शायरी
nichi nazron se na dekho sar-e-mahshar dekho

ग़ज़ल

नीची नज़रों से न देखो सर-ए-महशर देखो

रसा रामपुरी

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नीची नज़रों से न देखो सर-ए-महशर देखो
दाद-ख़्वाहों की तरफ़ आँख उठा कर देखो

हो के शमशीर-ब-कफ़ सैर घड़ी बहर देखो
मरने वालों की वफ़ा तेग़ के जौहर देखो

आह कैसी कभी शिकवा भी तुम्हारा न किया
ऐसे हम ज़ब्त-ए-मोहब्बत के हैं ख़ूगर देखो

वअदा-ए-हश्र है पर्दा भी ज़माने भर से
कोई दामन न पकड़ ले सर-ए-महशर देखो

उन को दुश्मन से जो उल्फ़त है तो परवा न करो
ऐ 'रसा' तुम भी किसी और पे मर कर देखो