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निहायत इंकिसारी आजिज़ी से बात करते हैं | शाही शायरी
nihayat inkisari aajizi se baat karte hain

ग़ज़ल

निहायत इंकिसारी आजिज़ी से बात करते हैं

शाद बिलगवी

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निहायत इंकिसारी आजिज़ी से बात करते हैं
हम उन से जब वो हम से बे-रुख़ी से बात करते हैं

हमारे साथ हो तो मुख़्तसर सी बात होती है
चला करती है पहरों जब किसी से बात करते हैं

हमें कहते हैं देखो भई किसी से बात मत करना
और उस पर ख़ुद जो मिलता है उसी से बात करते हैं

तुम्हीं हो एक जिन को बात करने का सलीक़ा है
हमीं हैं एक जो बे-हूदगी से बात करते हैं

हुए जाते हो क्यूँ कपड़ों से बाहर ग़ैर की सन कर
ज़रा बैठो तसल्ली दिल-जमी से बात करते हैं

किसी से बात करते हैं किसी की बात होती है
अरे बावा तुम्हारी कब किसी से बात करते हैं

बढ़ाए दोस्ती का हाथ दुश्मन भी तह-ए-दिल से
लगा लेते हैं सीने से ख़ुशी से बात करते हैं

अकेले थे तरसते थे किसी से बात करने को
तो हम ने सोचा आओ 'शाद' ही से बात करते हैं