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निगह से चश्म से नाज़-ओ-अदा से | शाही शायरी
nigah se chashm se naz-o-ada se

ग़ज़ल

निगह से चश्म से नाज़-ओ-अदा से

मीर हसन

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निगह से चश्म से नाज़-ओ-अदा से
ख़ुदा महफ़ूज़ रक्खे हर बला से

किसी की बेवफ़ाई से मुझे क्या
मैं अपने काम रखता हूँ वफ़ा से

बहुत माँगीं दुआएँ हाथ उठा कर
न निकला काम कुछ आख़िर दुआ से

मुझे डर है कहीं रुस्वा न हो तू
जो मैं रुस्वा हुआ तेरी बला से

'हसन' देता है तू क्यूँ जी बुतों पर
मिला देंगे तुझे क्या ये ख़ुदा से