निगह से चश्म से नाज़-ओ-अदा से
ख़ुदा महफ़ूज़ रक्खे हर बला से
किसी की बेवफ़ाई से मुझे क्या
मैं अपने काम रखता हूँ वफ़ा से
बहुत माँगीं दुआएँ हाथ उठा कर
न निकला काम कुछ आख़िर दुआ से
मुझे डर है कहीं रुस्वा न हो तू
जो मैं रुस्वा हुआ तेरी बला से
'हसन' देता है तू क्यूँ जी बुतों पर
मिला देंगे तुझे क्या ये ख़ुदा से
ग़ज़ल
निगह से चश्म से नाज़-ओ-अदा से
मीर हसन