निगाह-ए-क़हर-परवर को भी तम्हीद-ए-ख़ुशी समझे
समझना है तो कोई हम से राज़-ए-ज़िंदगी समझे
वफ़ाओं का नतीजा हम तो जो कुछ है समझते हैं
मगर ऐ काश अंजाम-ए-जफ़ा वो भी कभी समझे
उसे दैर-ओ-हरम में जाज़बिय्यत क्या नज़र आए
जो तेरी दीद को अस्ल-ए-मज़ाक़-ए-बंदगी समझे
हमें तो ख़ैर जो कुछ आप ने चाहा वो समझाया
मगर ये तो ज़रा समझाइए कुछ आप भी समझे
भला 'नख़शब' तिरे इस बे-नियाज़ाना रवय्ये को
कमाल-ए-क़ुर्ब जाने या मोहब्बत की कमी समझे
ग़ज़ल
निगाह-ए-क़हर-परवर को भी तम्हीद-ए-ख़ुशी समझे
नख़्शब जार्चवि