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ने मोहरा बाक़ी ने मोहरा-बाज़ी | शाही शायरी
ne mohra baqi ne mohra-bazi

ग़ज़ल

ने मोहरा बाक़ी ने मोहरा-बाज़ी

अल्लामा इक़बाल

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ने मोहरा बाक़ी ने मोहरा-बाज़ी
जीता है 'रूमी' हारा है 'राज़ी'

रौशन है जाम-ए-जमशेद अब तक
शाही नहीं है ब-शीशा-बाज़ी

दिल है मुसलमाँ मेरा न तेरा
तू भी नमाज़ी मैं भी नमाज़ी

मैं जानता हूँ अंजाम उस का
जिस मारके में मुल्ला हों ग़ाज़ी

तुर्की भी शीरीं ताज़ी भी शीरीं
हर्फ़-ए-मोहब्बत तुर्की न ताज़ी

आज़र का पेशा ख़ारा-तराशी
कार-ए-ख़लीलाँ ख़ारा-गुदाज़ी

तू ज़िंदगी है पाएँदगी है
बाक़ी है जो कुछ सब ख़ाक-बाज़ी