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नज़्ज़ारा-ए-पैहम का सिला मेरे लिए है | शाही शायरी
nazzara-e-paiham ka sila mere liye hai

ग़ज़ल

नज़्ज़ारा-ए-पैहम का सिला मेरे लिए है

हसरत मोहानी

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नज़्ज़ारा-ए-पैहम का सिला मेरे लिए है
हर सम्त वो रुख़ जल्वा-नुमा मेरे लिए है

उस चेहरा-ए-अनवर की ज़िया मेरे लिए है
वो ज़ुल्फ़-ए-सियह ताब-ए-दोता मेरे लिए है

ज़िन्हार अगर अहल-ए-हवस तुझ पे फ़िदा हूँ
ये मर्तबा-ए-सदक़-ओ-सफ़ा मेरे लिए है

बन कर मैं रज़ाकार मुहय्याए-फ़ना हूँ
आवाज़ा-ए-हक़ बाँग-ए-दरा मेरे लिए है

ख़ुशनूदी-ए-फ़ुज्जार के पैरव हैं यज़ीदी
तक़लीद-ए-शह-ए-कर्ब-ओ-बला मेरे लिए है

महरूम हूँ मजबूर हूँ बे-ताब-ओ-तवाँ हूँ
मख़्सूस तिरे ग़म का मज़ा मेरे लिए है

सरमाया-ए-राहत है फ़ना की मुझे तल्ख़ी
इस ज़हर में सामान-ए-बक़ा मेरे लिए है

जन्नत की हवस हो तो मैं काफ़िर कि परेशाँ
उस शोख़ की ख़ुशबू-ए-क़बा मेरे लिए है

पहले भी कुछ उम्मीद न थी चारागरों को
और अब तो दवा है न दुआ मेरे लिए है

मर जाऊँगा मय-ख़ाने से निकला जो कभी मैं
नज़्ज़ारा-मय रूह-फ़ज़ा मेरे लिए है

तशख़ीस-ए-तबीबाँ पे हँसी आती है 'हसरत'
ये दर्द-ए-जिगर है कि दवा मेरे लिए है