नज़र तक आया है पहचान तक नहीं आया 
ये वाहिमा अभी इम्कान तक नहीं आया 
जराहत-ए-ग़म-ए-दौराँ की इब्तिदा कहिए 
दिल-ए-जहाँ-ज़दा पैकान तक नहीं आया 
वो और बात कि जाँ की अमान माँगी थी 
मैं उस की बैअ'त-ओ-पैमान तक नहीं आया 
बस उस के लम्स का इल्हाम ही उतरता है 
वो मेरे मुसहफ़-ए-विज्दान तक नहीं आया 
ये ज़िंदगी तो नफ़ी में गुज़ार दी मैं ने 
पर उस के हल्क़ा-ए-मीज़ान तक नहीं आया 
किताब-ए-हुस्न की ताबीर ख़ैर क्या करता 
'नदीम' आइना उन्वान तक नहीं आया
        ग़ज़ल
नज़र तक आया है पहचान तक नहीं आया
कामरान नदीम

