नज़र से दूर होते जा रहे हैं
सरापा नूर होते जा रहे हैं
जिन्हें बदनाम करना चाहते हो
वही मशहूर होते जा रहे हैं
हम आग़ाज़-ए-सफ़र से पहले ही क्यूँ
थकन से चूर होते जा रहे हैं
बढ़ी है रौशनी तहज़ीब-ए-नौ की
मकाँ बे-नूर होते जा रहे हैं
हर इक अपना जनाज़ा ढो रहा है
सभी मज़दूर होते जा रहे हैं
खिले थे फूल ज़ख़्मों के जो इक दिन
वो अब नासूर होते जा रहे हैं
ग़ज़ल
नज़र से दूर होते जा रहे हैं
ख़्वाजा जावेद अख़्तर

