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नज़र से दूर हैं दिल से जुदा न हम हैं न तुम | शाही शायरी
nazar se dur hain dil se juda na hum hain na tum

ग़ज़ल

नज़र से दूर हैं दिल से जुदा न हम हैं न तुम

साबिर ज़फ़र

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नज़र से दूर हैं दिल से जुदा न हम हैं न तुम
गिला करें भी तो क्या बे-वफ़ा न हम हैं न तुम

हम इक वरक़ पे तो हैं दो हुरूफ़ की सूरत
मगर नसीब का लिक्खा हुआ न हम हैं न तुम

हमारी ज़िंदगी परछाइयों की ख़ामोशी
क़रीब लाती है जो वो सदा न हम हैं न तुम

हम एक साथ हैं जब से ये रोग हैं तब से
किसी भी रोग की लेकिन दवा न हम हैं न तुम

हमारे जिस्म हैं पानी पे जैसे तस्वीरें
बिखरते रंगों के दुख का सिला न हम हैं न तुम

दुहाइयां जो नहीं दें 'ज़फ़र' सितम सह कर
समझ रही है ये दुनिया ख़फ़ा न हम हैं न तुम